भारतीय रुपये की ऐतिहासिक गिरावट: क्या होगा असर?
भारतीय रुपया सोमवार को एक बार फिर अपनी सबसे निचली सतह पर पहुंच गया। 4 नवंबर को ट्रेडिंग समाप्ति के बाद, Dollar against rupee 84.11 के स्तर पर बंद हुआ। यह 31 अक्टूबर को Dollar against rupees 84.08 की रिकॉर्ड निचली दर से भी नीचे गिर गया है। रुपये में यह गिरावट लगातार 11वें ट्रेडिंग दिन देखने को मिली है। इस गिरावट का प्रमुख कारण भारतीय शेयर बाजार में गिरावट और विदेशी निवेश का आउटफ्लो माना जा रहा है, जिससे आयात महंगा हो सकता है।
रुपये में गिरावट के मुख्य कारण
- शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव: रुपये में गिरावट भारतीय शेयर बाजार से इक्विटी निकासी का परिणाम है। विदेशी निवेशकों के शेयर बेचने और अमेरिकी डॉलर की बढ़ती मांग के कारण Dollar against rupees में कमजोरी आई है।
- अमेरिकी चुनाव का प्रभाव: अमेरिकी चुनावों का असर भी Dollar against rupis पर पड़ा है। चुनाव के कारण डॉलर मजबूत हुआ, जिससे डॉलर की तुलना में रुपये की कीमत कम हो गई।
- सेन्सेक्स और निफ्टी में गिरावट: सोमवार को सेंसेक्स में 941 अंक (1.18%) की गिरावट दर्ज की गई और यह 78,782 पर बंद हुआ। वहीं, निफ्टी भी 309 अंक (1.27%) की गिरावट के साथ 23,995 पर बंद हुआ, जिससे Dollar against rupee की स्थिति कमजोर हो गई।
आयात और विदेशी शिक्षा पर असर
Dollar against rupee के गिरने का सीधा असर भारत में आयातित वस्तुओं की कीमतों पर पड़ेगा। Dollar against rupee का यह कमजोर मूल्य का मतलब है कि भारत को आयात के लिए अधिक रुपये खर्च करने होंगे, जिससे सामान और सेवाएं महंगी हो जाएंगी।
- आयात: भारत में कच्चे तेल, गैस, इलेक्ट्रॉनिक्स, दवाइयां आदि आयात किए जाते हैं। Dollar against rupee महंगा होने से इन वस्तुओं की कीमत में वृद्धि होगी, जिससे महंगाई बढ़ेगी।
- विदेशी शिक्षा: Dollar against rupee की कीमत बढ़ने से विदेश में पढ़ाई का खर्च भी बढ़ गया है। भारतीय विद्यार्थियों को अब 1 डॉलर के बदले लगभग 84 रुपये चुकाने होंगे। इससे विदेशी शिक्षा, रहन-सहन और अन्य खर्चे महंगे हो जाएंगे।
- विदेश यात्रा: Dollar against rupee के महंगे होने से विदेश यात्रा भी महंगी हो जाएगी, जिससे भारतीय पर्यटकों को अधिक खर्च उठाना पड़ेगा।
रुपये की गिरावट का भविष्य
बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि Dollar against rupee की स्थिति और भी कमजोर हो सकती है। रिपोर्ट्स के अनुसार, आने वाले दिनों में रुपये का स्तर 84.25 तक पहुंच सकता है। रुपये में यह गिरावट आयातकों के लिए चिंता का विषय बन सकता है, क्योंकि इससे उत्पादन लागत बढ़ेगी और वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि हो सकती है।

विदेशी मुद्रा का महत्व और रुपया कैसे मजबूत होता है?
रुपये का मूल्य फॉरेन रिजर्व और अर्थव्यवस्था की स्थिति पर निर्भर करता है। जब विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट होती है तो Dollar against rupee के मुकाबले रुपये का मूल्य कम हो जाता है और डॉलर मजबूत हो जाता है। Dollar against rupee का मूल्य स्थिर रखने के लिए जरूरी है कि भारत के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार हो। अगर विदेशी भंडार घटता है तो रुपये में कमजोरी आती है, और भंडार बढ़ने पर रुपये की कीमत में सुधार होता है। इसे फ्लोटिंग रेट सिस्टम कहते हैं, जिसमें मुद्रा का मूल्य बाजार की स्थिति पर निर्भर करता है।
रुपये में गिरावट से बचाव के उपाय
- आयात घटाना: सरकार को अनावश्यक आयात कम करने की कोशिश करनी चाहिए, जिससे Dollar against rupee की मांग कम हो सके।
- विदेशी निवेशकों को आकर्षित करना: सरकार और रिजर्व बैंक विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के उपाय करें ताकि विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ सके, जिससे Dollar against rupee की स्थिति सुधर सकती है।
- विनिमय दर पर निगरानी: रिजर्व बैंक को रुपये की स्थिरता के लिए सक्रिय कदम उठाने चाहिए ताकि Dollar against rupee में अधिक उतार-चढ़ाव न आए।
- बाजार में हस्तक्षेप: जब Dollar against rupee की दर बहुत कमजोर हो जाती है तो सरकार और रिजर्व बैंक डॉलर की आपूर्ति बढ़ाने के लिए हस्तक्षेप कर सकते हैं, जिससे रुपया थोड़ा मजबूत हो सकता है।
निष्कर्ष
Dollar against rupee में आई इस गिरावट से आयात महंगे हो गए हैं, विदेशी शिक्षा और यात्रा भी महंगी हो गई है। ऐसे में आम भारतीयों के लिए यह समय चुनौतियों से भरा है। Dollar against rupee का यह गिरता स्तर न केवल महंगाई बढ़ा सकता है, बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी इसका असर पड़ सकता है।
इसलिए जरूरी है कि सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक मिलकर रुपये को स्थिर रखने के उपाय करें, ताकि आम लोगों पर इसका बोझ कम हो सके।
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